साहित्य
प्रियतम तुम तो बदल गए

प्रियतम तुम तो बदल गए
आज बैठी तारों के आगोश में, सोचती हूँ जीवन की बीती परतों को।
खोजती हूँ प्रेम प्रसंग की, खट्टी-मीठी बतियों को।
कुछ हवाओं का रुख बदला-बदला सा लगता है,
आसमान का रंग भी कुछ फीका-फीका लगता है।
कल तक जो आवाजें, मीठी कोयल की कूकें थी,
आज खामोशी के सन्नाटों में, पिघली सिमटी लगती हैं।
जो आंँखों के कोने हरदम, मुझको ढूंढा करते थे,
जीवन के उन पन्नों पर, मेरा ही चित्रण करते थे।
आज उन चंचल आंँखों को, मेरी आँखें ढूंढ़ रही,
हरपल, हरदम तुमसे देखो, बस ये ही बोल रहीं,
प्रियतम तुम तो बदल गए, प्रियतम तुम तो बदल गए।
उन हाथों की नरमी, उन अहसासों की गर्मी को,
मेरा मन अब तरस रहा।
वो अरमानों का बादल मेरी आंँखों से है बरस रहा।
वो बातों के सुमधुर समन्दर, ना जाने कहाँ समा गए,
वो अन्तर मन की मुस्कानों के, भँवर न जाने कहाँ गए।
उन बेमतलब की मुस्कानों को, मेरा मन है ढूंढ़ रहा।
हरपल, हरदम तुमसे देखो, बस ये ही बोल रहा,
प्रियतम तुम तो बदल गए, प्रियतम तुम तो बदल गए।
वो आधी रातों में जब, तुम मेरा रस्ता तकते थे,
मैं व्यस्त हो जाती थी, तो इन्तज़ार में थकते थे।
आज मेरे आने की आहट, तुम्हारे खर्राटों में दफन कहीं,
जो पल-पल की चिन्ताएं थी, ना जाने अब वो कहाँ गयीं।
आज उस अपनेपन को, मेरा मन है तरस रहा,
हरपल, हरदम तुमसे देखो, बस ये ही बोल रहा,
प्रियतम तुम तो बदल गए, प्रियतम तुम तो बदल गए।
—
नेहा जिंदल



