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हिंदुस्तानी तहज़ीब के हवाले से बे-नज़ीर है, नज़ीर अकबराबादी की शायरी,

 “नज़ीर की शायरी में हिंदुस्तानी तहज़ीब के रंग”  के उन्वान पर आगरा में मुशायरा,

नज़ीर की शायरी हिंदुस्तानी  समाज का एक आईना,

आगरा( बेबाक न्यूज़ 24)

अवाम की आवाज़ को अदब की जबान अता करने में नज़ीर का कोई सानी नहीं। नजीर की शायरी हिंदुस्तानी  समाज का एक आईना है। नज़ीर की शायरी में दूरअंदेशी ओर तहज़ीब की अक्कासी भर पूर है। इन ख्यालात का इज़हार दानिशवरों ने आगरा के सेंट जॉन कॉलेज में किया ।

उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी की पहल पर नज़ीर अकबराबादी की सरजमीन अकबराबाद (आगरा) में  “नज़ीर की शायरी में हिंदुस्तानी तहज़ीब के रंग”  के उन्वान पर एक मुशायरे का आयोजन किया गया ।  मुशायरे की सदारत हाईकोर्ट के वकील ख़लीलुर्रहमान और निज़ामत तालीफ हैदर ने की  ,  सेंट जॉन्स कॉलेज के प्रिंसिपल प्रोफेसर एसपी सिंह, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर शाफे किदवाई , प्रोफेसर  शफीक अशरफी, प्रोफेसर शहजाद नबी , आगरा की एडीजे मीना खान, प्रोफ़ेसर कमरुलहुदा फरीदी आदि लोगों ने मेहमाने खुसूसी की हैसियतसे शामिल हुए । सभी मेहमानो को फूलो का गुलदस्ता और मैमेन्टो पेश कर के स्वागत किया गया।

प्रोग्राम की अध्यक्षता कर रहे खलीलुर्रहमान एडवोकेट ने अपनी तकरीर में कहा कि नज़ीर की शायरी हिंदुस्तानी  समाज का एक आईना है और यह नज़ीर का कारनामा ही था कि उन्होंने जनता की आवाज को अदब की आवाज बना कर पेश  किया ।प्रोफेसर एसपी सिंह ने नज़ीर को अपने जमाने से आगे का शायर करार दिया और कहा कि नज़ीर ने जो बातें कहीं उन्में समाजवादी विचारों की झलक साफ दिखाई देती है । वह तरक्कीपसंद तहरीक से बहुत पहले ही तरक्कीपसंद शायर के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। उर्दू अदब की तारीख नज़ीर के बिना पूरी नहीं हो सकती  और आगरा का इतिहास नज़ीर के बिना मुकम्मल नहीं हो सकता।

लखनऊ भाषा विश्वविधालय के प्रोफेसर शफीक अशरफी ने कहा कि नज़ीर उर्दू जबान के शायर हैं मगर उनकी शायरी उर्दू ही की नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान की शायरी है। आजादी से पहले अंग्रेजों ने जब भारत  मैं  फूट डालना शुरू किया तो आगरा के लोगों ने नज़ीर की मज़ार से एकता , भाईचारे और समाजी एकजहती का पैग़ाम दिया। प्रोफेसर शाफे किदवई ने कहा कि त्योहार और मेलों-ठेलों पर जिस तरह नज़ीर ने शायरी की है वह अपने पूरे दौर की तहज़ीबी रवायतों की आईनादार हैं।

इस अवसर पर डॉ नसरीन बेगम ,ङा अन्जुम बाराबंक्वी,  डॉक्टर शम्स तबरेज ,तालीफ हैदर,ङा सब्ते हसन नकवी,ङा रिजवानउद़दीन फारुकी,सदफ फातिमा,सादिया सलीम,नवेद अहमद,वग़ैरा ने अपने मकाले पेश किए।

सेमिनार के कन्वूनर  वामिक़ खान  ने फिक्शन निगार मोहसिन खान और यूपी उर्दू अकादमी का खुसूसी तौर पर शुक्रिया अदा किया

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