आफाक अलमास उत्तर प्रदेश में अवध क्षेत्र के ज़िला बलरामपुर मे पैदा हुये, शुरूआती शिक्षा बलरामपुर से हासिल की औेर फिर आगे की शिक्षा के लिये लखनऊ शहर का रूख़ किया जहाँ उन्हों ने उर्दू मे एम.ए और भारतेन्दु नाटक अकादमी से ड्रामा डायरेक्शन, सेट मेकिँग,कास्टयूम डिजाईनिंग मे क्रेश कोर्स किया, शहर लखनऊ से उन का सम्बंध शुरु से था ,
याद रहे लखनऊ वह शहर है जहाँ वाजिद अली शाह जैसे नवाबों ने हुकूमत की और ड्रामे की बुनियाद रखने और उस फन को बढ़ाने संवारने और तरक्की देने में अहम किरदार अदा किया.
ये उन्हीं लोगों की कोशिशों का नतीजा था कि वहाँ पे बहुत से अदीब, शायर, ड्रामा निग़ार पैदा हुये । मुल्क के हालात तबदील हो जाने के बाद शायरी, अफसाना ,नावेल को तो तरक्की नसीब हुई लेकिन ड्रामा बेरुखी की वजह से ज़वाल की ओर बढ़ता गया.
चूँकि वाजिद अली शाह अपने वली अहदी के ज़माने से लेकर बादशाह बन जाने व तादमे आखिर तक ड्रामे की इस कदर परवरिश और आबयारी की थी कि ये फन वहाँ की मिटटी के खमीर मे शामिल हो गया था । यही वजह है कि समय समय पर कोई ना कोई ड्रामा निगा़र वहाँ पैदा होता रहा, एक बार फिर बरसों के बाद उस मिटटी ने आफाक अलमास की शकल मे ड्रामा निगा़र पैदा किया ।
आफाक अलमास का खास मैदान थियेटर है लेकिन उन्होनें “मियाँ भाई” के नाम से इक नावेल भी लिखा जिस पर उन्हें उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी की जानिब से 2014 में इनाम से भी नवाज़ा गया । वह अपने क्रिएटिव कामों के लिये शहर मुम्बई मे सकूनत अख्तियार की। उनहोंने ड्रामे की तरक्की और प्रगति के लिये “ड्रामा और टी़वी अकादमी” के नाम से इक तन्ज़ीम कायम की और लखनऊ मे उर्दू ड्रामों पर कई सेमिनार आयोजित कराए , जिसमे उस दौर के बडे़ ड्रामा निगा़र डा.शीमा रिज़वी, विलायत जाफ़री, बी. एन. ए के डायरेक्टर सुशील कुमार सिंह , शकील सिद्दीकी, कुमुद नागर वगै़रह शामिल हुये। उर्दू ड्रामे पर हिन्दी और उर्दू अखबारात मे उनके मज़ामीन शाया होते रहे।
आफाक अलमास के उर्दू ड्रामों के तीन संकलन प्रकाशित हो चुके हैं । उन ड्रामो पर उर्दू हिन्दी और अंग्रेज़ी के अखबारों मे समीक्षायें भी प्रकाशित हो चुकी हैं । उनका पहला संकलन 1998 मे “महात्मा ” के उन्वान से प्रकाशित हुआ था जो महात्मा गाँधी के उसूलों ओर आदर्शों पर मुब्नी था। उसमें गाँधी जी को एक ख़्याली किरदार के तौर पर पेश किया गया है । इन्सान की मौत तो मुमकिन है लेकिन ख़्याल हमेशा ज़िन्दा रहता है । मोजूदा दौर मे इस की अहमियत और मानवियत इस लिये और बढ जाती है क्यों कि आज जब दुनिया के तमाम मुल्कों मे गाँधी जी के उसूलों को नये सिरे से समझा और सराहा जा रहा है। ऐसे मे हमारे मुल्क के सियासतदाँ गाँधी जी के उसूलों को सिर्फ सियासी और ज़ाती मफाद के लिये इस्तेमाल कर रहे हैं । यही इस ड्रामे में दिखाया गया है। इस संकलन मे दूसरा ड्रामा “मुझे शिकायत है” शामिल है। ये ड्रामा फिर्कावाराना फसाद पर आधारित है । उनका दूसरा ड्रामा कलेकशन “ये वह सहर तो नहीं है” तकसीम ए हिन्द के बाद दोनो मुल्कों के बनते बिगडते रिश्तों के बारे मे है । इस मे सिर्फ दो किरदार हैं, गंगादीन और दीन मुहम्मद , जिनके आबाओ अजदाद लखनऊ और लाहौर से एक दूसरे के शहर चले गये थे । उनके बेटे गंगादीन और दीन मुहम्मद सरहद पर एक फौजी की हैसियत से मिलते हैं । दोनो अपने जुदा हुए हमवतनों को याद करते हैं । इतने मे सरहद पर तनाव बढ जाता है, जिसमे क्रास फायरिंग मे एक दूसरे की गोलियों से मारे जाते हैं । उनके तीसरे संकलन मे दो ड्रामे ” एक मर्द की खुदनविश्त ” और “उन जिस्मो मे औरतें रहती है” नारीवादी नाटक हैं जिसे ऊत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी ने 2017 मे पुरस्कार से नवाज़ा है.
आफाक अलमास के ये सभी ड्रामे स्टेज पर पेश हुये और खुद उन्हों ने अपने निर्देशन मे पेश भी किये। आफाक अलमास ने 1985 से अपने निर्देशन की शुरुआत कमेडी प्ले ” दिल की दुकान” से की थी और तब से मुसलसल अपने ड्रामा ग्रूप ” डरामा और टी.वी.अकादमी ” के बैनर तले एक दर्जन से ज़यादा ड्रामे स्टेज किये, उनकी हिदायतकारी मे कॉरपोरेट ड्रामा ” मुहब्बत दी ताज ” आगरा के कलाक्र॔ति आडिटोरियम मे 18 ज़बानो मे पेश किया जाता रहा जो अभी भी जारी है, जिसमे 242 शोज़ आफाक अलमास की हिदायतकारी मे स्टेज किये गये. इस समय वह मुम्बई मे फिल्म स्क्रिप्ट राईटिगँ मे जद्दो जहद कर रहे हैं.
डा. रफीउद्दीन,
लेक्चरर ,
जनता इन्टर कालेज, अम्बारी,
आज़मगढ