साहित्य
दिल तुमसे नाराज़ बहुत है-डॉ.मानसी द्विवेदी

———गीत——
दिल तुमसे नाराज़ बहुत है,
बाहर-बाहर चुप लगता है भीतर से आवाज़ बहुत है.
मेरे मन की पीड़ा आख़िर
जाकर तुमको कौन सुनाये.
तुमको हँसी ख़ुदा ने सौंपी
मेरे हिस्से आँसू आये.
भले मूल मत लौटाना तुम लेकिन तुम पर ब्याज बहुत है.
दिल तुमसे नाराज़ बहुत है.
तुम सचमुच कश्मीर सरीखे
सुंदर हो लेकिन मुश्किल है.
ना खोया ना पाया जाए
संकट में ये मेरा दिल है.
संविधान की कमज़ोरी सा मन का टूटा साज़ बहुत है.
दिल तुमसे नाराज़ बहुत है.
दिल ने कुछ बातें कहने की
ज़िम्मेदारी ले तो ली है.
शीशे के मंदिर में मैंने
मूरत भारी ले तो ली है.
इनसे भी कुछ हो न सकेगा
इन आँखों में लाज बहुत है.
दिल तुमसे नाराज़ बहुत है.
(डॉ.मानसी द्विवेदी,लखनऊ)



