समाज

महिलाओं को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के लिए जागरूक करना किसकी है ज़िम्मेदारी ??

नारी उत्थान के लिए शिक्षा ही है एक मात्र विकल्प

महिलाओं को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के लिए जागरूक करना किसकी है ज़िम्मेदारी ??

(मोनिका अग्रवाल,मुरादाबाद)

8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है. इस मौके पर क्यों ना लंबे लंबे भाषण देने से अच्छा है कि हम अपने आसपास महिलाओं में जागरुकता और साक्षरता फैलाएं। असल में इस दिवस का अर्थ ही सभी वर्ग की महिलाओं को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के लिए जागरूक करना है। 

 

समृद्ध और खुली सोच का तालमेल हैं  महिलाएं

  वर्तमान सामाजिक संदर्भ में, व नारी की दशा और दिशा में, क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है ।कोई भी समाज एक जगह स्थिर नहीं रहता हर पल बदलता रहता हैं ! हर पल बदलते समाज में महिलाओ की असल सूरत को पहचान  पाना मुश्किल हैं !  वर्तमान युग, चेतना का युग है। इक्कीसवीं शताब्दी में भारतीय नारी अपनी लक्ष्मण रेखाओं को छोड़ अबलापन की भावना  से  हटकर   विकास के  पथ  पर  चल चुकी  है। 

किसी भी युग ,समाज ,संस्कृति के सशक्त होने की पहली सीढ़ी है शिक्षा ।पर यह केवल एक मात्र शर्त नहीं है। सशक्त होने के लिए तो मन की स्थिति को साफ सुंदर सुघड़ और जागरूक बनाने की भी आवश्यकता होती हैं ।परंपरा और सदियों से चली आ रही प्रथाओ के लीक से हटने के लिए मानसिक तौर पर जागरुक होने की जरूरत है। 

दुनिया भर में बढ़ती राजनैतिक और आर्थिक उथलपुथल के बीच, हमारी आबादी भी तेज़ी से बढ़ रही है। बढ़ती आबादी के कारण पर्यावरण, दुनिया के आवास, वनों और संसाधनों जैसे पानी पर दबाव बढ़ रहा है। गुटमाचर इन्सटीट्यूट और पाॅपुलेशन एक्शन इंटरनेशनल जैसे संगठनों का कहना है सात बिलियन का आंकड़ा इस बात की पुष्टि करता है कि लोगों को अपने परिवार के आकार और स्पेसिंग पर ध्यान देना चाहिए। पाया गया है कि खासतौर पर विकासशील दुनिया में, महिलाएं और विवाहित जोड़े अपनी फर्टीलिटी पर नियन्त्रण रखने में सक्षम नहीं हैं।  

महिलाएं यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में शिक्षित नहीं हैं

महिलाओं और लड़कियों को अक्सर उनके प्रजनन स्वास्थ्य एवं अधिकारों के बारे में जानकारी और सेवाएं नहीं मिलतीं। यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों में आने वाली कुछ बाधाएं हैं भेदभाव, प्रतिबंधात्मक कानून और नीतियां, समाज में बसी रूढ़िवादी परम्पराएं। इस प्रमाणों के बावजूद प्रगति की गति बहुत धीमी है कि ये अधिकार केवल महिला के जीवन में बल्कि परिवारों, समुदायों और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में भी बदलावकारी प्रभाव ला सकते हैं। समानता को बढ़ावा देने के लिए हम सभी को पूरी तरह एवं सक्रियता से महिलाओं और लड़कियों के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों के लिए प्रतिबद्धता दर्शानी होगी। यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य का तात्पर्य सिर्फ शारीरिक कल्याण से ही नहीं है बल्कि इसमें स्वस्थ एवं सम्मानूपर्ण संबंधों का अधिकार; सुरक्षित, समावेशी और उचित स्वास्थ्य सेवाएं; गर्भनिरोध के प्रभावी और किफ़ायती साधनों के बारे में उचित जानकारी शामिल है।

सिर्फ महिलाओं को ही नसबंदी या अन्य गर्भनिरोधक साधनों के इस्तेमाल के लिए कहा जाता है

अक्सर देखा जाता है कि 35 साल या इससे अधिक उम्र की महिलाएं स्थायी गर्भनिरोध को अपनाती हैं, और यह गर्भनिरोध का सबसे आम प्रकार है। वे महिलाएं इस विकल्प पर विचार करती हैं, जो और बच्चे नहीं चाहतीं। एक बार नसबंदी कराने के बाद फिर से प्रजनन क्षमता हासिल नहीं की जा सकती। नसबंदी में की जानी वाली सर्जरी जटिल होती है ओर इसमें काफी जोखिम होता है। सर्जरी के बाद महिला को ठीक होने में समय लगता है। हालांकि इसके बाद गर्भधारण की संभावना बहुत ही कम हो जाती है; यह भी पाया गया है कि कम उम्र में नसबंदी कराने से गर्भधारण को जोखिम अधिक होता है। उन्हें गर्भनिरोध के अन्य किफ़ायती एवं प्रभावी साधनों के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए।

गलत अवधारणाों के चलते महिलाएं गर्भनिरोध के आधुनिक साधनों को नहीं अपनातीं।

परिवार नियोजन के बारे में कई ऐसी गलत अवधारणाएं भी हैं जिसके चलते महिलाएं गर्भनिरोध के आधुनिक साधनों को नहीं अपनाती हैं। कुछ लोगों को लगता है ये आॅब्जेक्ट शरीर के अन्य हिस्सों जैसे दिल या अन्य अंगों में जाकर नुकसान पहुंचा सकते हैं, वहीं कुछ लोगों को लगता है कि गर्भनिरोधक उपकरण गर्भपात के द्वारा गर्भावस्था को रोकते हैं। यह उपकरण गर्भाश्य से शरीर के किसी अन्य अंग में नहीं जा सकते। ज़्यादा से ज़्यादा ये सिर्फ शरीर से बाहर निकल सकते हैं, ऐसे मामलों में इन्हें दोबारा लगाया जा सकता है। इनका इस्तमेाल करने वाली महिलाओं को पहले कुछ महीनों तक अनियमित या हैवी पीरियड्स सकते हैं, लेकिन आमतौर पर कुछ समय बाद स्थिति सामान्य हो जाती है।

आज भी 8 फीसदी भारतीय महिलाएं कम उम्र में मां बनती हैं

हर साल 46 मिलियन महिलाएं अनचाहा गर्भधारण कर लेती हैं और परिणामस्वरूप 20 मिलियन महिलाएं असुरक्षित गर्भपात कराती हैं। एक साल में 69000 से अधिक महिलाओं की मृत्यु हो जाती हैं, इससे अधिक संख्या में महिलाएं मनोवैज्ञानिक एवं शारीरिक समस्याओं जैसे इनफर्टीलिटी, क्रोनिक पेल्विक दर्द और जनन मार्ग में संक्रमण की शिकार हेा जाती हैं। भारत में 1970 के दशक में मेडिकल टर्मिनेशन आॅफ प्रेग्नेन्सी एक्ट के पास होने के बावजूद बड़ी संख्या में युवा महिलाएं असुरक्षित गर्भपात की समस्या से जूझ रही हैं। यह अािनियम गर्भावस्था समाप्त करने में आनी वाली कानूनी बाधाओं को दूर करता है, लेकिन इसके बावजूद महिलाएं गर्भपात के लिए अप्रशिक्षित स्थानीय सेवा प्रदाता के पास जाती हैं। 

निष्कर्ष

हर गर्भनिरोधक उपाय के अपने फायदे और सीमाएं होती हैं, किसी भी साधन को चुनते समय इसकी सुरक्षा, प्रभाविता और आपकी जीवनशैली पर ध्यान देना ज़रूरी है। हो सकता है कि एक साधन एक व्यक्ति के लिए उचित हो किंतु दूसरे के लिए नहीं। साथ ही याद रखें कि आपकी अपनी ज़रूरत भी समय के साथ बदल सकती है। इसलिए अपने लिए उचित साधन का चुनाव करने से पहले सभी जानकारी हासिल कर लें। आधुनिक गर्भनिरोधक साधनों से जुड़ी गलत अवधारणाओं को दूर करने के लिए शैक्षणिक प्रोग्रामों का संचालन भी ज़रूरी है।  

(मिस सविता कुट्टन, संस्थापक एवं सीईओ, ओमनीक्योरिस , से बातचीत पर आधारित)

 

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