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डीजिटल के इस दौर में भी कम नहीं हुई फिजिकल बुक की चाह,
लखनऊ के 18 वें राष्ट्रीय पुस्तक मेले में युवावों में दिखा जोश,
लाकडाऊन से छुटकारा मिलते ही बुक फेयर में दिखी भीड़,
लखनऊ ( आलिया सिद्दीकी),
कहा जाता है कि किताबें इंसान की बेहतरीन साथी होती हैं । उनको पढ़ना उनके लेखकों से बातें करना जैसा होता है । शायद यही वजह है कि लखनऊ के मोती महल लान में लोग मन पसंद कितबों को तलाश करते नज़र आए ।
इस बार लखनऊ में 1 से 10 अक्टूबर तक 18 वें राष्ट्रीय पुस्तक मेले का आयोन किया गया। मेले के आयोजक मनोज सिंह ने बताया कि कोरोना महामारी ने समाज के सभी वर्गों पर असर डाला है। बुक फेयर पर भी यह असर देखा जा सकता है मगर मास्क और सेनिटाईज़र आदि के प्रयोग और भीड़ भाड़ से एहतियात व दो गज़ दूरी बना कर लोगों ने अब घरों से निकलना शुरू कर दिया है। इस मेले में भी इन बातों का ख्याल रखा जा रहा है ।
इस बार के पुस्तक मेले की खास बात यह रही कि नई पीढ़ी डिजिटल लाईब्रेरी और डिजिटल व पीडीएफ बुक की सुविधा होने के बावजूद फिज़िकल बुक की तरफ भी आकृषित दिखाई दी। कोरोना काल से उत्पन्न हुई अवसादवाद जैसी स्थिति से उबरने के लिए धार्मिक और मोटिवेशनल बुक की तलाश करते नई उम्र के लोग भी नज़र आए।
मशहूर प्रकाशक वाणी प्रकाशन के स्टाल पर बताया गया कि इस बार बुक फेयर में भारतीय भाषाओं में सबसे ज्यादा बिकने वाली किताब “राम कथा” रही । इसी प्रकार “रैशनल थिंकर्स कैफे” नामक स्टाल पर धर्म में दिलचस्पी रखने वाले लोगों ने काफी खरीदारी की। मौलाना वहीदुद्दीन खां की किताब “In search of God” , विदेशी लेखक Stephen.C.Meyer की पुस्तक “Signature in the cell” मौलाना अली मियां नदवी फाऊंडेशन द्वारा प्रकाशित “Biography of Prophet” आदि जैसी किताबें यहां पुस्तक प्रेमियों की पहली पसंद रहीं ।
“आज़ादी का अमृत महोत्सव” थीम पर आधारित इस बार के पुस्तक मेले में 45 प्रकाशकों ने हिस्सा लिया और लगभग 140 स्टाल्स लगाए गए। इन स्टाल्स पर 10 से लेकर अधिकतम 70 प्रतिशत तक डिस्काऊंट भी दिए गए।
मेले के अंदर एक पंडाल में पुस्तकों के विमोचन , परिचर्चा , लेखक से मिलिये , कवि सम्मेलन व ड्रामा आदि सासंकृतिक कार्यक्रम व प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया।