इंसान की पहचान दरहम व दीनार ,दर व दीवार , मकान व मीनार से नहीं,बल्कि उसकी ख़ूबी, फन या कला से होती है.. अलीमुल्लाह सिद्दीकी का शुमार भी ऐसे ही फनकारों में होता है ,जिन्होंने अपनी कला को अपनी ज़िन्दगी का जुनून बना दिया है… लखनऊ के पुराने हैदरगंज इलाके में.. एक छोटे से मकान के अंदर, अपने कारनामों की नई इबारत लिख रहे हैं.