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प्रशासन और जनता की सूझ-बूझ ने बलरामपुर को हाथरस नहीं बनने दिया
त्वरित कार्रवाई से जनता में विश्वास पैदा हुआ और इंसाफ की उम्मीद जगी

त्वरित कार्रवाई से जनता में विश्वास पैदा हुआ और इंसाफ की उम्मीद जगी,
प्रशासन और जनता की सूझ-बूझ ने बलरामपुर को हाथरस नहीं बनने दिया,
(डा हमीदुल्लाह सिद्दीकी)
यूं तो देश-दुनिया में रोज़ न जाने कितने बलात्कार के मामले सामने आते हैं मगर कुछ मामले सुर्खियां बन कर समाजी ताने-बाने के लिए खतरा बन जाते हैं । हाथरस का ताज़ा मामला सबके सामने है। इस मामले की तपिश से पूरा पश्चिमी उत्तरप्रदेश ज़ातीय आधार पर सुलग रहा है। प्रदेश का सियासा पारा भी बहुत गरम है जो आग में घी डालने का काम कर रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वंय स्वीकार किया है कि एक साज़िश के तहत प्रदेश में जातीय और संप्रदायिक दंगे का माहौल बनाया जा रहा है।
हाथरस की घटना की तरह बलरामपुर में भी 29 सितंबर को एक घटना हुई और यहां भी माहौल खराब करने की कोशिश की गई। पीड़ित और आरोपी पक्ष के अलग-अलग समुदाय होने की वजह से यहां मामला ज़्यादा गंभीर था लेकिन जिस तरह स्थानीय प्रशासन ने अपनी सहनशीलता,समझदारी ,कार्य कुशलता और कार्रवाई दिखाई वह अपने आप में एक नज़ीर है । जनपद के जन-प्रतिनिधियों ने भी ला-एंड-आर्डर को बरकरार रखने में आपनी ज़िम्मदारी समझी और बाहरी लोगों के बहकावे में नहीं आए ।
बलरामपुर के जिलाधिकारी कृष्णा करूणेश बताते हैं कि घटना के बाद प्रशासन पूरी तरह पीड़ित पक्ष के साथ न सिर्फ खड़ा रहा बल्कि हर वह कदम उठाया जिससे मामले में इंसाफ मिल सके। जिन आरोपियों को नामज़द किया गया ,मुकदमा लिखकर तत्काल उनकी गिरफ्तारी की गई। बारह घंटे के भीतर पुलिस अधीक्षक देव रंजन वर्मा के साथ पीडित परिवार से मुलाकात कर उनकी फौरी राहत के लिए 6 लाख से ज़्यादा की सहायता धनराशि देने का अनुमति पत्र प्रदान किया गया । प्रथमिकता के आधार पर पीडित परिवार की समस्याओं और शंकाओं का निदान किया गया

पूरे मामले में पुलिस अधीक्षक बलरामपुर की भूमिका भी काफी सराहनीय रही । डीएम के साथ बेहतर तालमेल बिठाया और हाथरस की तरह बलरामपुर का माहौल तनाव पूर्ण नहीं होने दिया । न मीडिया को और न जन-प्रितिनिधियों को पीड़ित परिवार से मिलने से रोका गया और न धारा 144 लगायी गयी ,न कोई लाठीचार्ज हुआ और न कोरोना का हवाला देकर आम जनता को परेशानी में डाला गया । सियासी दलों को भी भरोसे में लेकर संतोषजनक रणनीति बनाई गई और शासन के आला अधिकारियों को भी जिले की संवेदवशीलता से अवगत कराया गया। मीडिया के साथ भी बहतर ताल-मेल बना कर उनको ज़रूरी सुचनाएं सही समय पर मुहय्या कराई गईं और अनावश्यक बयानबाज़ी से गुरेज़ किया गया । चंद पत्रकारों और संगठनों ने क्राईम की इस घटना को धार्मिक रंग देने की कोशिश की भी तो उन्हें भी चेताया गया कि कानून के दायरे में रह कर ही काम करें अन्यथा उनसे सख्ती से निपटा जाएगा । सुरक्षा व्यवस्था के लिए माकूल बंदोबस्त किए गए और एक क्लीयर मैसेज दिया गया कि किसी भी व्यक्ति,संगठन या समुदाय के द्वारा कानून हाथ में लेने की कोशिश की गई तो कतई बर्दाशत नहीं किया जाएगा।
जो कमियां और गलतियां हाथरस में देखी गईं उनसे सबक लेते हुए बलरामपर में अभिसूचना समेत पूरा प्रशासनिक अमला सतर्क रह कर अभी भी काम कर रहा है । विवेचना बहुत बारीकी से की जा रही है , प्रभावी पैरवी से गुनाहगारों को सख्त से सख्त सज़ा दिलाने का पुलिस अधीक्षक का वादा है और जो आरोपी हैं उनके परिवार को भी अपना पक्ष रखने का मौका दिया जा रहा है, उन्हें भी यह यकीन दिलाया जा रहा है कि किसी निर्दोष को किसी भी तरह प्रताणित नहीं किया जाएगा ।
स्थानीय लोग भी अमन चाहते हैं और यह मानते हैं कि पुलिस-प्रशासन का काम मुल्जिम को गिरफ्तार करके जेल भेजना और निषपक्ष विवेचना कराना है,बाकी काम अदालत का है ।
गैंगरेप और हत्या की पीड़िता के नाना, माँ, भाई और अन्य परिजनों ने जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक बलरामपुर को मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन भी दिया है जिसमें 7 मांगों का उल्लेख है । पीड़ित परिवार मे मांग की है कि आरोपियों का रिमांड लेकर उनसे कड़ाई से पूछताछ की जाए और उन्हें फांसी की सज़ा दिलाई जाए । पीड़ित परिवार के जीवन यापन के लिए एक करोड़ रूपये की सहायता धनराशि , सरकारी पट्टे की जमीन, आवास और बेटे को सरकारी नौकरी के साथ असलहे का लाईसेंस दिया जाए ।इस संबंध मे ज़िलाधिकारी का कहना है कि पीड़ित परिवार के मेमोरंडम को मुख्यमंत्री तक न सिर्फ पहुंचाएंगे बल्कि जल्द अज़ जल्द उनकी मांगों की पूर्ति के लिए सिफारिश व कोशिश भी करेंगे ।



