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मुजफ्फरपुर में जिस अस्पताल में चमकी बुखार से हुई 108 बच्चों की मौत, वहां मिले मानव कंकाल

पटना:

बिहार के मुजफ्फरपुर में कृष्णा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में मानव कंकाल के अवशेष मिले हैं. इसी अस्पताल में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (चमकी बुखार) से अभी तक 108 बच्चों की मौत हो चुकी है. मानव शरीर के अवशेष मिलने के बाद अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट एसके शाही ने कहा, ‘पोस्टमॉर्टम विभाग प्राचार्य के अधीन आता है, लेकिन इसमें मानवीय संवेदनाओं को ध्यान रखना चाहिए. मैं प्रिंसिपल से बात करूंगा और उन्हें इस मामले की जांच के लिए जांच कमेटी बनाने के लिए कहूंगा.’
श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, मुजफ्फरपुर की जांच टीम ने वहां का दौरा किया, जहां अवशेष मिले हैं. अस्पताल के डॉ. विपिन कुमार ने कहा, ‘यहां मानव कंकाल के अवशेष मिले हैं. प्रिंसिपल पूरी जानकारी देंगे.’क्या बिहार सरकार के पास 100 बेड का ICU बनाने के लिए भी पैसा नहीं हैं?

बता दें, बिहार में अभी तक करीब 130 बच्चों की मौत हो चुकी है. मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौत का मामला लोकसभा में भी उठा है. भाजपा के एक सदस्य ने शुक्रवार को लोकसभा में सरकार से इस बात की जांच कराने की मांग की कि बिहार के मुजफ्फरपुर में एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम से बच्चों की मौत के मामले में लीची को जिम्मेदार ठहराना कहीं इस फल को बदनाम करने की साजिश तो नहीं है. बिहार के सारण से लोकसभा सदस्य राजीव प्रताप रूड़ी ने शून्यकाल में इस विषय को उठाया और कहा कि मुजफ्फरपुर में हालात बहुत चिंताजनक हैं.

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उन्होंने कहा, ‘हमें बताया गया है कि मुजफ्फरपुर में बच्चों द्वारा लीची का सेवन करना इन्सेफेलाइटिस का कारण हो सकता है. हम बचपन से लीची खा रहे हैं लेकिन हमें इन्सेफेलाइटिस नहीं हुआ.’ रूड़ी ने कहा कि कुछ भ्रामक जानकारी की वजह से कई लोगों ने लीची खाना और लीची का जूस पीना बंद कर दिया है.

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साथ ही उन्होंने कहा, ‘‘सरकार को जांच करानी चाहिए कि मुजफ्फरपुर में एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम से बच्चों की मौत को लीची खाने से जोड़ना कहीं भारतीय लीची उत्पादक किसानों के हितों को नुकसान पहुंचाने का षड्यंत्र तो नहीं है.’ कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि राज्य और केंद्र सरकार के लापरवाही पूर्ण रवैये के कारण बिहार में हालात सुधर नहीं रहे और एईएस की वजह से गरीब बच्चों की मौत हो रही है. चौधरी ने यह भी कहा कि बिहार में रोगियों और डॉक्टरों का अनुपात भी बहुत कम है.

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