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करीब 24 साल बाद मायावती और मुलायम सिंह यादव एक मंच पर नजर आए।

लखनऊ:
करीब 24 साल तक एक-दूसरे को बेहद नापसंद करने वाले समाजवादी पार्टी के संरक्षकण मुलायम सिंह यादव और बीएसपी सुप्रीमो मायावती एक मंच पर नजर आए। मायावती गेस्ट हाउस कांड को भुलाकर समाजवादी पार्टी के गढ़ मैनपुरी में मुलायम सिंह के लिए वोट मांगने पहुंचीं। मंच पर मुलायम सिंह के पहुंचने पर मायावती ने खड़े होकर उनका स्वागत किया।
इससे पहले मंच पर चार और फिर तीन कुर्सियों को लगाए जाने से मुलायम के आने को लेकर सस्पेंस बना हुआ था। बताया जा रहा है कि पहले चार कुर्सियां मुलायम सिंह, मायावती, अखिलेश यादव और अजित सिंह के लिए लगाई गई थीं लेकिन बाद में एक कुर्सी हटा ली गई। समाजवादी पार्टी के सूत्रों ने बताया कि जो कुर्सी हटाई गई थी वह अजित सिंह की थी। उनका कोई कार्यक्रम नहीं था।
दलित और यादव अपनी शत्रुता को भुला दें’
विश्लेषकों के मुताबिक इस रैली के जरिए मायावती की कोशिश है कि उनके कोर वोटर दलित और एसपी के कोर वोटर यादव भी अपनी शत्रुता को भुला दें और बीजेपी को केंद्र की सत्ता से बाहर करने के लिए एक साथ आएं। मुलायम सिंह के साथ मंच साझा कर वह यह संदेश भी देना चाहती हैं कि गेस्ट हाउस कांड उनके लिए अब बीते दिनों की बात हो गई है। उन्होंने कहा कि ऐसे समय पर जब राजधानी दिल्ली में लोकसभा सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच ट्विटर वॉर चल रहा है। बीएसपी सुप्रीमो मायावती और एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने देश को यह मजबूत संदेश देने की कोशिश की है कि वे बीजेपी को हराने के लिए अपनी 24 साल पुरानी दुश्मनी को भी भुला सकते हैं। इससे विपक्ष में उनकी एक मजबूत छवि बनी है।
गेस्ट हाउस कांड के बाद टूटे थे रिश्ते
बता दें कि 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई और 1993 के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा था। इस गठबंधन को जीत मिली थी और मुलायम सिंह यादव सीएम बने थे। हालांकि, दो ही साल में दोनों पार्टियों के बीच रिश्ते खराब होने लगे। इसी बीच मुलायम सिंह को भनक लग गई कि मायावती बीजेपी के साथ जा सकती हैं।
मायावती लखनऊ स्थित गेस्ट हाउस में विधायकों के साथ बैठक कर रहीं थीं। इतने में एसपी के कार्यकर्ता और विधायक वहां पहुंचे और बीएसपी के कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट करने लगे। आरोप है कि मायावती पर भी हमला करने की कोशिश की गई लेकिन उन्होंने खुद को एक कमरे में बंद करके खुद को बचा लिया। इस घटना के बाद मायावती ने समर्थन वापस लेने के ऐलान कर दिया। इसके बाद मायावती बीजेपी से समर्थन से सीएम बन गईं।
सीएम बनने के बाद मायावती ने मुलायम सिंह सरकार द्वारा उद्योगपतियों को दिए गए लाइसेंस को निरस्त कर दिया। उन्होंने कई जांच भी शुरू कर दी। वर्ष 2003 में जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने भीमराव अंबेडकर पार्क के निर्माण कार्य को रोक दिया। यही नहीं पार्क की बिजली की सप्लाई को भी बंद कर दिया गया। इससे मायावती का ड्रीम प्रॉजेक्ट अधर में लटक गया।
अखिलेश ने मायावती की मूर्ति लगवाई
यही नहीं लखनऊ में मायावती की मूर्ति तोड़े जाने के बाद 24 घंटे के अंदर अखिलेश सरकार ने उसे दोबारा लगवा दिया। इससे राज्य में दलित-ओबीसी जातियों के बीच संघर्ष होने से रुक गया। इस घटना के कई साल बाद वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव और वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से सबक लेते हुए वर्ष 2018 में मायावती और अखिलेश ने राज्य में फूलपुर, गोरखपुर और कैराना के उपचुनाव में बीजेपी को हराने के लिए हाथ मिला लिया। तीनों जगहों पर गठबंधन को जीत मिली। इसी के बाद दोनों के बीच लोकसभा चुनाव में गठबंधन बनाने पर सहमति बनी।



